रामायण के बाद युद्ध के मैदान से आखिर कहा विलुप्त हो गई पूरी वानर सेना, आखिर क्या है इसका रहस्य आइये जानते है जैसा की हम सब जानते है की भगवान राम के साथ सीता को लंका से वापस लाने में इन वाहनों का सबसे बड़ा सहयोग दान रहा है तो आखिर युद्ध के मैदान से कहां गायब हो गई यह गाना आगे जानते हैं उसका रहस्य,
भगवान राम ने बनाई वानरों की विशाल सेना
जब भगवान राम को पता चला की लंका पति दशानन रावण माता सीता का हरण कर उन्हें लंका लेकर चला गया है तब श्रीराम ने हनुमान और सुग्रीव की सहायता से वानर सेना का संगठन किया। तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक फैला है. कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्क स्ट्रेट से घिरा है। यहां श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला। श्रीराम ने अपनी सेना को कोडीकरई में इकट्ठा करके सलाह मंत्रणा की।
समुद्र पर लंका तक के लिए बनाया था पुल
जैसा की वानर सेना ने फिर रामेश्वर की ओर कूच किया था, क्योंकि पिछली जगह से समुद्र पार होना बेहद मुश्किल था। श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाले, जहां से बहुत आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। फिर विश्वकर्मा के पुत्र नल और नील की सहायता से वानरों ने पुल बनाना शुरू कर दिया जिससे की लंका पहुंचा जा सके।
वानर सेना में कितने थे सैनिक
हम जापको बता दे की वानर सेना में वानरों के अलग अलग झुंड था. हर झुंड का एक सेनापति था. जिसे यूथपति कहा जाता था। यूथ अर्थात झुंड है. लंका पर चढ़ाई के लिए सुग्रीव ने वानर और ऋक्ष सेना की व्यवस्था की थी। बताया जाता है कि ये वानर सेना जुटाई गई थी. ये सेना तकरीबन एक लाख के आसपास थी।